मॉस्को: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को रूसी भाषा में लिखी भगवद् गीता की एक प्रति भेंट कर भारत-रूस संबंधों में एक गहरा सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आयाम जोड़ा है। यह प्रतीकात्मक उपहार, दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी को रक्षा और ऊर्जा सौदों से परे ले जाते हुए, एक गहरे बौद्धिक जुड़ाव को स्थापित करता है। डिप्लोमेटिक गलियारों में इस उपहार को एक सूक्ष्म लेकिन मजबूत संकेत के रूप में देखा जा रहा है: भारत अपने पुराने और भरोसेमंद दोस्त रूस को करीब रखेगा, जबकि वह पश्चिमी देशों से भी दूरी नहीं बना रहा है।
गीता: संकट प्रबंधन की 'डिप्लोमेटिक कुंजी'
भगवद् गीता भेंट करने का यह कूटनीतिक कार्य भारत की सॉफ्ट पावर नीति का हिस्सा है। गीता की शिक्षा, जो संकट के समय में कर्तव्य और अनासक्ति का पाठ पढ़ाती है, अब दोनों देशों के बीच संबंधों के लिए एक आध्यात्मिक आधार तैयार कर रही है। इस ग्रंथ की प्रमुख शिक्षाओं में से एक है—कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन (मनुष्य को फल की इच्छा किए बिना अपने काम को पूरी ईमानदारी से करना चाहिए)। यह दर्शन दोनों देशों के बीच एक ऐसा डिप्लोमेटिक रास्ता तैयार करता है, जहाँ अगर भविष्य में कभी भू-राजनीतिक तनाव की संभावना भी आती है, तो भी संवाद और समझ जारी रहे।
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रणनीतिक गर्माहट: ऐसे सांस्कृतिक उपहार, रक्षा और ऊर्जा जैसे पारंपरिक क्षेत्रों से इतर, राजनयिक संबंधों में एक व्यक्तिगत और 'गर्माहट' लाते हैं।
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सार्वभौमिक ज्ञान: पीएम मोदी ने इस उपहार के माध्यम से भारत के उस ज्ञान को वैश्विक मंच पर साझा किया जो किसी विशेष धर्म या संप्रदाय तक सीमित नहीं है, बल्कि संपूर्ण मानव जाति के लिए एक सार्वभौमिक जीवन दर्शन है।
जीवन दर्शन: क्यों ज़रूरी है गीता का ज्ञान?
पुतिन को भेंट की गई गीता, जिसे पीएम मोदी अक्सर उद्धृत करते हैं, मानव जीवन की चुनौतियों का सामना करने और सही निर्णय लेने में मार्गदर्शन करती है। महाभारत के युद्ध के मैदान में जब अर्जुन मोह और कर्तव्य के बीच फँस गए थे, तब श्रीकृष्ण से मिले ज्ञान ने उन्हें सही मार्ग दिखाया था। यह ग्रंथ जीवन जीने की कला सिखाता है, सही-गलत का बोध कराता है, और व्यक्ति को मानसिक शक्ति प्रदान करता है। राजनयिक और राष्ट्रीय नेताओं के लिए, यह ज्ञान संघर्ष और जटिल वैश्विक राजनीति के बीच संतुलन साधने का एक आध्यात्मिक टूल बन सकता है।
वैश्विक नेताओं को पीएम मोदी की 'गीता डिप्लोमेसी'
यह पहली बार नहीं है जब पीएम मोदी ने किसी वैश्विक नेता को भगवद् गीता भेंट की है। यह उनकी एक स्थापित सांस्कृतिक कूटनीति का हिस्सा है:
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जापान (2014): तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे को जापानी भाषा में गीता भेंट की।
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अमेरिका (2014): तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा को गीता की प्रति भेंट की।
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चीन (2014): चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को साबरमती आश्रम में मंदारिन भाषा में लिखी गीता भेंट की।
यह 'गीता डिप्लोमेसी' दर्शाता है कि भारत किस तरह अपने प्राचीन ज्ञान को अपनी सॉफ्ट पावर का आधार बना रहा है ताकि रणनीतिक लाभ के साथ-साथ दुनिया भर के नेताओं के साथ व्यक्तिगत और बौद्धिक संबंध मजबूत किए जा सकें।